वो जब इक़रार की जुंबिश
तेरे होंठों पे आई थी
मुझे भी एक लम्हे को लगा था
कि खुशबू सी मेरे कानों में भरती जा रही है
बड़ी ख़ामोशी से तुमने मुझे बताया था
कि अब हम मिल नहीं सकते
और मैं ये सोच के हैरां था
कि मैं तुम्हारे इक़रार की बारिश में भीगूँ
या फिर इस हिज्र के वीराने में घुल जाऊं
मगर मैं खुश हूँ
कि आखिरी वक़्त ही सही
जुदा होने से कुछ पहले
तुमने इक़रार तो किया
Dec 2014
Monday, December 28, 2015
तुमने इक़रार तो किया
Friday, December 18, 2015
साहिर, अमृता और इमरोज़
एक ख़्वाब की रात है ये
ख़्वाब ऐसा कि जिसमे तीन शक्लें
आपस में गुड़मुड़ हो गयी हैं
एक का नाम साहिर
एक का अमृता
और
एक का इमरोज़ था शायद
लेकिन आखिर ए शब
यूँ हुआ
एक का ख्वाब टूटा
एक ने ख़्वाब देखा
और एक ने ख़्वाब जिया
Wednesday, December 16, 2015
निर्भया के लिए
वो जो एक बार साहिर ने कहा था
कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की हंसी छाँव में
गुजरने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
अब कहाँ वो ज़ुल्फ़ों की हंसी छाँव है
अब तो बाजार में उड़ते हैं हया के चिथड़े
अब कहाँ उसकी नज़र पर है शमा का धोख़ा
अब तो बेबस सी निगाहें है तेरी
जिनमे उठते हैं न जाने कई तूफान मगर
तुम उन्हें सबसे छुपा के खुद ही घबराती हो
अब मगर इस नए साल की आमद के वक़्त
एक नया अज़्म तुमको भी उठाना होगा
अपने दामन के राख शोलों को
फिर से उस रंग में लाना होगा
फिर से हो जाओ तुम उस आग की मानिंद कि जो
फिर कोई हाथ लगाने की तमन्ना न करे
और फिर बरसो गरजती हुई बूंदों की तरह
जिसमे धुल जाएँ सभी ज़ख्म जो दुनिया ने दिए
और फिर से वही एक नज़्म मैं दोहराता रहूँ
कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में
गुजरने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
1jan 2014
Monday, December 14, 2015
तुम्हारे इंतज़ार का मौसम
समंदर पर बिताये सुनहरी ख्वाब सारे
कहीं सूरज में जाके खो गए हैं
उन्ही ख़्वाबों में अक्सर जागना पड़ता है पहरों
जो हमने साथ मिलकर तय किये थे
उन्ही रस्तों पे चलना पड़ रहा है
बहुत तनहा मुसाफत हो गई है
इन्ही खामोशियों के साये साये
उन्ही रस्तों पे फिर से लौट आओ
तुम्हारे इंतज़ार का मौसम
कई जन्मों से
एक ही मक़ाम पर ठहरा हुआ है
2012
Tuesday, December 8, 2015
क़तरा क़तरा
आज फिर ख़्वाबों की महफ़िल में सुलगना होगा
आज फिर खुशबू की आंधी में बिखरना होगा
आज फिर भूली हुई याद के किनारों पर
बैठके क़तरा क़तरा लम्हा लम्हा
खुद को टुकड़ों में बहाना होगा
आज फिर रात की रेशम में पिघलना है मुझे
चाँद की बाँहों में सर रखके सिमटना है मुझे
आज फिर महकी हुई रात में जलना होगा
2009
Sunday, November 29, 2015
कॉफ़ी शॉप
तुम्हे कॉफ़ी शॉप में बिताई वो शाम याद है
जब हम पहली बार मिले थे
और सदियों की प्यासी धरती पर
बादल यूँ टूट के बरसे थे
जैसे मुहब्बत टूट कर होती है
हमारा सिलसिला भी उस दिन
कुछ यूँ ही शुरू हुआ था
मैं आज भी उस बारिश की तरह
टूट कर बरसता हूँ
मगर अपनी ज़मीन से बहुत दूर
2012
Thursday, November 19, 2015
वक़्त ए रुख़्सत
अलविदाई शाम के हाथों में जब
ओस की बूँद झिलमिलाई थी
मेरी आँख के सारे मंज़र
तुम्हारे हाथों की लकीरों में
क़ैद हो गए थे
2012
Wednesday, November 11, 2015
ऐ दीप आज कुछ यूँ दहको
ऐ दीप आज कुछ यूँ दहको
फूलों, ख़ुशबू की बारिश हो
हर ज़र्रा ज़र्रा महका दो
मेरे आँगन का इक इक कोना
अंगड़ाई लेकर चहक उठे
एक ईद मने दीवाली पर
सुख़न, प्रेम और जॉय, अनू
आतिश मिज़ाज सब झूम उठें
महफ़िल ए शायरी रंग में हो
ऐ दीप आज कुछ यूँ दहको
Friday, November 6, 2015
एक ख़्वाहिश
तुम नहीं आये तो हँसता हुआ चमन सारा
एक ही रात में वीरान हो गया जानां
एक गुल भी न बचा बाद ए बहाराँ न रही
ख़ाक़ उड़ती रही कोई रंग न खुशबू बाक़ी
अब तो आ जाओ कि गुलशन की ख़ैर है तुमसे
शाख़ की गुल की हवाओं की ख़ैर है तुमसे
सबसे बढ़कर मेरी सांसों की ख़ैर है तुमसे
2008
Sunday, October 25, 2015
एक तमन्ना
आज मैं बहुत खुश हूँ
आज मेरी आँखों में
ख़्वाब का बसेरा है
आज एक तमन्ना ने
फिर से हाथ पकड़ा है
फिर से मेरी खुशियों ने
राह नयी देखी है
बे वजह नहीं ये सब
कुछ तो बात गहरी है
आज मेरी ज़िन्दगी ने
ज़िन्दगी जनम दी है
May 2013
Friday, October 23, 2015
शहर ए दिल
इसी शहर में जहाँ रंगो बू के ख़्वाब मिले
इसी शहर ने थी बख्शी हयात की दौलत
इसी ने जाम ए तमन्ना अता किया मुझको
इसी शहर ने मुझे चांदनी के ख़्वाब दिए
इसी शहर में एक चेहरा गुलाब जैसा था
कि जिसको देख के हम सुबहो शाम करते थे
वो जिसके नाम से इस दिल की शाहराहों पर
सफ़ेद मोतीये के फूल खिला करते थे
कि जिसको पा के मुहब्बत की सुर्ख राहों पर
तमाम दर्द ज़िन्दगी के भुला देते थे
अबकी जब तुम नहीं हो ख्वाब ओ ख़याल में मेरे
तो क्या मैं छोड़ के सब कुछ कहीं चला जाऊं
शहर ए दिल शहर ए तमन्ना यही है अब मेरा
अब इसे छोड़ के जाने का मन नहीं करता
2011
Thursday, October 22, 2015
सब इश्क़ का हासिल
कल शब चाँद को देखा मैंने
डूबा डूबा सहमा सहमा
बिखरा बिखरा तनहा तनहा
रोती आँखें भीगा मंज़र
उसकी जागती आँखों में
तस्वीर थी कोई धुंधली सी
मैंने ग़ौर से देखा उसको
कोई मंज़र पहचाना सा सामने आया
जैसे उसकी आँखों में कोई जलता हो
मैंने पूछा चाँद से इतने तनहा क्यों हो
वो बोला सब इश्क़ का हासिल
ये उदास शामों का खूंरेज़ मंज़र
ये तनहा शबों में भटकना हमेशा
बे वजह नहीं है
मुहब्बत यही है
Sunday, August 30, 2015
धनक के रंग
दुआ में मांग रहा हूँ सवाल बनके तुम्हें
जवाब बनके मेरी रूह में उतर जाओ
कि जैसे दूर कहीं वादियों में शाम ढले
नर्म लम्हात की रौनक तुम्हारे चेहरे पर
रंग बनके कभी चमके कभी बिखर जाये
धनक के रंग जो फैलें तुम्हारी आँखों में
और शरमाते हुए खुद में जो सिमट जाओ
याद कर लेना मुझे उस सुनहरी मंज़र में
मैं चुपके से चला आऊंगा हवा बनकर
तुम भी एक बार कभी खुशबू बनके आ जाओ
दुआ में मांग रहा हूँ.......
2008
Wednesday, August 26, 2015
एक बेनाम सा किस्सा
ये तेरा मेरा जो दर्द का रिश्ता है जानां
मुहब्बत के किसी बाब में दर्ज नहीं
कभी लिखा न किसी ने
पढ़ा सुना न कभी
एक बेनाम सा किस्सा है
फ़क़त कुछ भी नहीं
और इस बेनाम से किस्से के दो किरदार हैं हम
एक बहते हुए दरिया के दो किनारे हैं
साथ चलते हैं मगर एक नहीं हो सकते
Feb 2011
Monday, August 17, 2015
आँखें ऐसे टूट के बरसें
एक ऐसा गीत बुनो
जिसमे मेरी तेरी आवाज़ें हों
दर्द में डूबी बिखरी सी दो आवाज़ें
जिसमे शायर ने लिखा हो सावन का मौसम
भीगा लहजा भीगी पलकें भीगे सुर ठहरे हों
आँखें ऐसे टूट के बरसें
जैसे ख़्वाब कोई मरता हो
जैसे साये की ख़्वाहिश में
कोई धूप में जलता हो
एक ऐसा गीत बुनो
Thursday, July 9, 2015
मेरी साँसों का गीलापन
तुम्हारी आवाज़ को छूकर लौटा तो देखा
मेरी साँसों का गीलापन अभी तक ताज़ा है
तुमने कोई बोसा देकर फिर से आंसू भेजे होंगे
मगर इस बार तुम्हारी आँखों की लौ थोड़ी मद्धम थी
बिखरते टूटते लम्हों की आहट थी उसमें
वो आहट हौले से मैंने छूकर देखी है
2009
Tuesday, June 30, 2015
मुहब्बत इसको कहते हैं
सुनो
जब हम नहीं होंगे
रोज़ ओ शब् कैसे गुज़रेंगे
कहाँ जाओगी मेरे बिन
ये सह पाओगी मेरे बिन
सुहानी चांदनी रातों में
जब वीरान दिल होगा
बिखर जायेगी खुशबू
जब तुम्हारे दिल के आँगन में
खुलेगा राज़ ये तुम पर
मुहब्बत इसको कहते हैं
चराग़ों के सफ़र में
हलकी सी आहट से तुम जागो
समझ लेना
मुहब्बत इसको कहते हैं
2009
Sunday, June 28, 2015
कोई मंज़र उभरता है
मेरे ख्वाबों की रौशनी में
जब भी कोई मंज़र उभरता है
तो सोचता हूँ
कि उस मंज़र के पार
जो चेहरा नज़र आता है
वो कौन है
वो कौन सी शय है
जो मुझे लगातार बेचैन करती है
और मैं नए मंज़र की तलाश में
नए ख्यालों की रौशनी बुनता हूँ
और हर बार तेरी निगाहों की ज़द में
खुद को पाता हूँ
नए ख्वाबों की खुशबू में
ख़ुद को महकाता हूँ
पर चाह कर भी आज तक
भूल नहीं पाया हूँ
उन ख्वाबों को, उन निगाहों को
2009
Saturday, June 27, 2015
जैसे ख़ुशबू और हवा
मेरे ख्वाबों में
तुम्हारी शिरकत
आज भी उसी तरह रक़्स करती है
जैसे खुशबू और हवा
जहाँ जाएँ
हमेशा साथ चलती हैं
और मैं नींद में भी मुस्कुरा देता हूँ
ख्वाबों को बिखरने नहीं देता
तुम्हारे नाम के मौसम को
नयी उम्र देता हूँ
2009
Friday, June 26, 2015
तेरी ख़ुशबू लाते हैं
तेज़ हवा के झोंके जब भी
तेरा नाम सुनाते हैं
तेरी खुशबू लाते हैं
मैं पागल हो जाता हूँ
उन यादों में खो जाता हूँ
मेरी राहगुज़ारों में जब
तेरी आँखें लहरायीं थीं
और ख्वाब सुहाने लायीं थीं
उन राहों पर आज भी जब मैं चलता हूँ
मैं पत्थर हो जाता हूँ
उन यादों में खो जाता हूँ
2009
Thursday, June 25, 2015
अधखुली नींद के किनारों पर
रात के आखिरी पहर में जब
अधखुली नींद के किनारों पर
एक ख़्वाब ने आके दस्तक दी
मिट्टी की भीनी खुशबू सी आहट थी उसकी
बारिश की रिमझिम में भीग के आई थी
मैंने पूछा कौन नगर से आये हो तुम
उसके लब खामोश थे आँखें वीरां थीं
मैंने वो ख़ामोशी कितनी बार सुनी है
जाने कितनी बार मुहब्बत ख़्वाब बनी है
2011
ख़्वाब परेशां
जब रोशन रात हवाओं में
खुशबू बन के घुल जाती है
उस वक़्त मेरे दिल गोशे में
तुम अपने ख्वाब जगाती हो
उस सन्नाटे में अक्सर
एक शोर क़यामत होता है
वो ख़्वाब परेशां बिखर चुके
उन मेरे बिखरे ख़्वाबों को
एक लम्स शनासा दे जाओ
कुछ नाम पुराने दे जाओ
क्यूँकि
ये सारे नाम तुम्हारे हैं
ये सारे ख़्वाब तुम्हारे हैं