Wednesday, June 19, 2019

ग़ज़ल

आख़िरी वक़्त ये इज़हार बहुत
जी लिए आपके बीमार बहुत

ख़ूब खींची कमान यारों ने
हमको उनपे था एतबार बहुत

आज क्या चाँद भी न निकलेगा
हो चुका उनका इंतज़ार बहुत

आपको याद भी नहीं होगा
कोई रहता है बेक़रार बहुत

नींद की सरहदों पे ऐ जानाँ
ख़्वाब होने लगे बेदार बहुत

याद भी, दर्द भी, कहानी भी
इस ख़राबे में अपने यार बहुत

ये तेरा शहर, ये तेरी गलियाँ
आख़िरश ठहरे गुनहगार बहुत

रख लिए चाँद सितारे उसने
हम ख़ला में फिरे बेकार बहुत

ये नए पढ़ने वाले क्या जाने
मीर ग़ालिब हुए मिस्मार बहुत

मंज़िलों के उदास रस्तों पर
रक़्स करते रहे ग़मख़्वार बहुत

- सुख़नवर

Tuesday, February 26, 2019

ग़ज़ल

रँग ख़ुशबू के चमन में भर के
उम्र काटी यूँ चरागाँ कर के

रुत बदल डाली एक झटके में
उसने फूलों को इशारा कर के

उनको नज़रें बचा के देखते हैं
उनपे मरते हैं यार डर डर के

आज एक फूल और सूख गया
तुमने देखा नहीं नज़र भर के

जितने करने हैं सितम कर डालो
हम न आएँगे दोबारा मर के

मैंने एक बार इल्तजा की थी
उसने भेजी सज़ाएँ जी भर के

उसने फिर मीर का दीवान दिया
हम बदलने लगे चश्मे नज़र के

कहीं दो बात कर लें, चाय पी लें
भुला दें रंज अपने उम्र भर के

ग़ज़ल

विसाल ओ हिज्र की हद से गुजरना चाहा था
मेरी ग़ज़ल ने अभी रुख़ बदलना चाहा था

ये कौन है जो शहीदों में ज़िक्र करता है
हमारे इश्क़ ने गुमनाम मरना चाहा था

तुम्हारी शबनमी रातों में उजालों के लिए
बस इक चराग़ की मानिंद जलना चाहा था

सुबह की सेज पे जब धूप ने ली अंगड़ाई
सो आफ़ताब को आगोश करना चाहा था

तुम्हारे हिज्र ने क्या क्या न रँग दिखलाए
शब ए फ़िराक़ में सौ बार मरना चाहा था

तेरी तस्वीर बनाए नहीं बनती मुझसे
हरेक रँग ने तुझमें उतरना चाहा था

ख़ुदा रक़ीबों को हर गाम सलामत रक्खे
मुझे गिरा के उन्होंने सँभलना चाहा था

Tuesday, January 22, 2019

ग़ज़ल

महके जबीं पे रात दिन शम्स ओ क़मर कोई तो हो
गाये जो फ़ैज़ की ग़ज़ल शाम ओ सहर कोई तो हो

हमने सुख़न तराश कर उसको रंग ए ग़ज़ल किया
हुस्न ए ग़ज़ल के वास्ते हुस्न ए बहर कोई तो हो

ऐसे शहर में क्या जियें जिसमें तेरा बसर न हो
याद हो तेरी जा ब जा ऐसा शहर कोई तो हो

उसकी अदा ए नाज़ का मिलता नहीं कोई बदल
उसकी अदा ए नाज़ का इक हमसफ़र कोई तो हो

ये क्या कि अर्ज़ ए शौक़ पर तुमने निगाह फेर ली
महफ़िल ए रँग ए यार में अहल ए नज़र कोई तो हो

शहर ए फ़िराक़ ए यार में रातें गुज़ार दी गईं
जलवा ए हुस्न ए यार से रोशन सहर कोई तो हो

- सुख़नवर