इसी शहर में जहाँ रंगो बू के ख़्वाब मिले
इसी शहर ने थी बख्शी हयात की दौलत
इसी ने जाम ए तमन्ना अता किया मुझको
इसी शहर ने मुझे चांदनी के ख़्वाब दिए
इसी शहर में एक चेहरा गुलाब जैसा था
कि जिसको देख के हम सुबहो शाम करते थे
वो जिसके नाम से इस दिल की शाहराहों पर
सफ़ेद मोतीये के फूल खिला करते थे
कि जिसको पा के मुहब्बत की सुर्ख राहों पर
तमाम दर्द ज़िन्दगी के भुला देते थे
अबकी जब तुम नहीं हो ख्वाब ओ ख़याल में मेरे
तो क्या मैं छोड़ के सब कुछ कहीं चला जाऊं
शहर ए दिल शहर ए तमन्ना यही है अब मेरा
अब इसे छोड़ के जाने का मन नहीं करता
2011
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