Wednesday, June 19, 2019

ग़ज़ल

आख़िरी वक़्त ये इज़हार बहुत
जी लिए आपके बीमार बहुत

ख़ूब खींची कमान यारों ने
हमको उनपे था एतबार बहुत

आज क्या चाँद भी न निकलेगा
हो चुका उनका इंतज़ार बहुत

आपको याद भी नहीं होगा
कोई रहता है बेक़रार बहुत

नींद की सरहदों पे ऐ जानाँ
ख़्वाब होने लगे बेदार बहुत

याद भी, दर्द भी, कहानी भी
इस ख़राबे में अपने यार बहुत

ये तेरा शहर, ये तेरी गलियाँ
आख़िरश ठहरे गुनहगार बहुत

रख लिए चाँद सितारे उसने
हम ख़ला में फिरे बेकार बहुत

ये नए पढ़ने वाले क्या जाने
मीर ग़ालिब हुए मिस्मार बहुत

मंज़िलों के उदास रस्तों पर
रक़्स करते रहे ग़मख़्वार बहुत

- सुख़नवर