Tuesday, June 30, 2015

मुहब्बत इसको कहते हैं

सुनो
जब हम नहीं होंगे
रोज़ ओ शब् कैसे गुज़रेंगे
कहाँ जाओगी मेरे बिन
ये सह पाओगी मेरे बिन
सुहानी चांदनी रातों में
जब वीरान दिल होगा
बिखर जायेगी खुशबू
जब तुम्हारे दिल के आँगन में
खुलेगा राज़ ये तुम पर
मुहब्बत इसको कहते हैं
चराग़ों के सफ़र में
हलकी सी आहट से तुम जागो
समझ लेना
मुहब्बत इसको कहते हैं
2009

Sunday, June 28, 2015

कोई मंज़र उभरता है

मेरे ख्वाबों की रौशनी में
जब भी कोई मंज़र उभरता है
तो सोचता हूँ
कि उस मंज़र के पार
जो चेहरा नज़र आता है
वो कौन है
वो कौन सी शय है
जो मुझे लगातार बेचैन करती है
और मैं नए मंज़र की तलाश में
नए ख्यालों की रौशनी बुनता हूँ
और हर बार तेरी निगाहों की ज़द में
खुद को पाता हूँ
नए ख्वाबों की खुशबू में
ख़ुद को महकाता हूँ
पर चाह कर भी आज तक
भूल नहीं पाया हूँ
उन ख्वाबों को, उन निगाहों को
2009

Saturday, June 27, 2015

जैसे ख़ुशबू और हवा

मेरे ख्वाबों में
तुम्हारी शिरकत
आज भी उसी तरह रक़्स करती है
जैसे खुशबू और हवा
जहाँ जाएँ
हमेशा साथ चलती हैं
और मैं नींद में भी मुस्कुरा देता हूँ
ख्वाबों को बिखरने नहीं देता
तुम्हारे नाम के मौसम को
नयी उम्र देता हूँ
2009

Friday, June 26, 2015

तेरी ख़ुशबू लाते हैं

तेज़ हवा के झोंके जब भी
तेरा नाम सुनाते हैं
तेरी खुशबू लाते हैं
मैं पागल हो जाता हूँ
उन यादों में खो जाता हूँ
मेरी राहगुज़ारों में जब
तेरी आँखें लहरायीं थीं
और ख्वाब सुहाने लायीं थीं
उन राहों पर आज भी जब मैं चलता हूँ
मैं पत्थर हो जाता हूँ
उन यादों में खो जाता हूँ
2009

Thursday, June 25, 2015

अधखुली नींद के किनारों पर

रात के आखिरी पहर में जब
अधखुली नींद के किनारों पर
एक ख़्वाब ने आके दस्तक दी
मिट्टी की भीनी खुशबू सी आहट थी उसकी
बारिश की रिमझिम में भीग के आई थी
मैंने पूछा कौन नगर से आये हो तुम
उसके लब खामोश थे आँखें वीरां थीं
मैंने वो ख़ामोशी कितनी बार सुनी है
जाने कितनी बार मुहब्बत ख़्वाब बनी है
2011

ख़्वाब परेशां

जब रोशन रात हवाओं में
खुशबू बन के घुल जाती है
उस वक़्त मेरे दिल गोशे में
तुम अपने ख्वाब जगाती हो
उस सन्नाटे में अक्सर
एक शोर क़यामत होता है
वो ख़्वाब परेशां बिखर चुके
उन मेरे बिखरे ख़्वाबों को
एक लम्स शनासा दे जाओ
कुछ नाम पुराने दे जाओ
क्यूँकि
ये सारे नाम तुम्हारे हैं
ये सारे ख़्वाब तुम्हारे हैं