रँग ख़ुशबू के चमन में भर के
उम्र काटी यूँ चरागाँ कर के
रुत बदल डाली एक झटके में
उसने फूलों को इशारा कर के
उनको नज़रें बचा के देखते हैं
उनपे मरते हैं यार डर डर के
आज एक फूल और सूख गया
तुमने देखा नहीं नज़र भर के
जितने करने हैं सितम कर डालो
हम न आएँगे दोबारा मर के
मैंने एक बार इल्तजा की थी
उसने भेजी सज़ाएँ जी भर के
उसने फिर मीर का दीवान दिया
हम बदलने लगे चश्मे नज़र के
कहीं दो बात कर लें, चाय पी लें
भुला दें रंज अपने उम्र भर के