Saturday, March 18, 2017

वादा

यही तो तय हुआ था ना
कि हम अब ख़ुश रहेंगे
यही वादा किया था ना
कोई मौसम भी मेरी याद का
तुम हँस के सह लेना
तो देखो
मेरी आँखों को देखो तुम
ये कितनी पुरसुकूँ हैं
मेरे होठों की गहरी मुस्कुराहट
अब नहीं छुपती
मेरे चेहरे को भी देखो
ये कितना शोख़ लगता है
अगर वादा निभाना था
तो वादा कर दिया पूरा

मगर जानाँ
फ़राग़त के किसी मौसम में
मेरी नज़्म तुम पढ़ना
तुम्हें महसूस तो होगा
कहीं लहजे का फ़ीकापन
कहीं पे दर्द का दरिया
कहीं आँसू की बौछारें
कहीं रोता हुआ नग़मा
कहीं पे हिज्र का सहरा

सुनो तुम नज़्म मत पढ़ना

2007