Sunday, August 28, 2016

कमरा

एक अरसा हुआ है जबसे
उस कमरे का दरवाज़ा बंद है
वो इक कोने में रक्खी अलमारी में
न जाने कितने अहल ए अदब के दीवान
परत दर परत इक दूसरे पर जमे हुए हैं
वो कुर्सी पर रखा गिटार अब भी वहीं है
उस दिन तुम्हारी धुन बजाते हुए
उसका एक तार टूट गया था ना
वो अब तक जुड़ नहीं पाया
और उस कैनवास पर जो रंग बिखरे थे
वो पक्के हो गए हैं
तुम्हारी उँगलियों की छाप अब तक वैसी ही है
उसी कैनवास के पास वो डायरी भी है
जिसमे कुछ अधूरी नज़्मों की कहानियाँ थीं
तुमने भी तो एक नज़्म उस डायरी में लिखी थी
और इक गुलाब का तोहफ़ा उसमे डाल दिया था

बिखरी अलमारी, टूटे तार, बेरंग कैनवास
फटी डायरी और सूखा गुलाब
बहुत दिन बाद देखे हैं
आज बहुत दिन बाद तुम्हारी याद आई है

28Aug2016

Saturday, August 6, 2016

बूँद

इक बूँद का तोहफ़ा भेजा है
उस ख़्वाब नगर के बासी ने
उस देस के मौसम फिर मुझको
संदेसा उसका लाए हैं
उसकी धानी रंग चुनरी के
सब रंग चुरा कर लाए हैं
उस मिट्टी की महकारों ने
भीगे मन को पुरक़ैफ किया
उन भीगे से रुख़सारों ने
दिल के आँगन में
तेरी ख़ुशबू का भी इक पेड़ लगाया है
वो बूँद जो तेरे माथे से फिसली थी
तेरे होंठों तक
वो मोती बन कर यादों की सीपी में
कब की क़ैद हुई
ये बूँद जो तूने भेजी है
शायद
उस लम्हे का सरमाया हो
ए ख़्वाब नगर के बाशिंदे
क्या फिर से तूने मुझको मोती भेजा है!!

6aug 2016