एक अरसा हुआ है जबसे
उस कमरे का दरवाज़ा बंद है
वो इक कोने में रक्खी अलमारी में
न जाने कितने अहल ए अदब के दीवान
परत दर परत इक दूसरे पर जमे हुए हैं
वो कुर्सी पर रखा गिटार अब भी वहीं है
उस दिन तुम्हारी धुन बजाते हुए
उसका एक तार टूट गया था ना
वो अब तक जुड़ नहीं पाया
और उस कैनवास पर जो रंग बिखरे थे
वो पक्के हो गए हैं
तुम्हारी उँगलियों की छाप अब तक वैसी ही है
उसी कैनवास के पास वो डायरी भी है
जिसमे कुछ अधूरी नज़्मों की कहानियाँ थीं
तुमने भी तो एक नज़्म उस डायरी में लिखी थी
और इक गुलाब का तोहफ़ा उसमे डाल दिया था
बिखरी अलमारी, टूटे तार, बेरंग कैनवास
फटी डायरी और सूखा गुलाब
बहुत दिन बाद देखे हैं
आज बहुत दिन बाद तुम्हारी याद आई है
28Aug2016