तुम्हे कॉफ़ी शॉप में बिताई वो शाम याद है
जब हम पहली बार मिले थे
और सदियों की प्यासी धरती पर
बादल यूँ टूट के बरसे थे
जैसे मुहब्बत टूट कर होती है
हमारा सिलसिला भी उस दिन
कुछ यूँ ही शुरू हुआ था
मैं आज भी उस बारिश की तरह
टूट कर बरसता हूँ
मगर अपनी ज़मीन से बहुत दूर
2012
Sunday, November 29, 2015
कॉफ़ी शॉप
Thursday, November 19, 2015
वक़्त ए रुख़्सत
अलविदाई शाम के हाथों में जब
ओस की बूँद झिलमिलाई थी
मेरी आँख के सारे मंज़र
तुम्हारे हाथों की लकीरों में
क़ैद हो गए थे
2012
Wednesday, November 11, 2015
ऐ दीप आज कुछ यूँ दहको
ऐ दीप आज कुछ यूँ दहको
फूलों, ख़ुशबू की बारिश हो
हर ज़र्रा ज़र्रा महका दो
मेरे आँगन का इक इक कोना
अंगड़ाई लेकर चहक उठे
एक ईद मने दीवाली पर
सुख़न, प्रेम और जॉय, अनू
आतिश मिज़ाज सब झूम उठें
महफ़िल ए शायरी रंग में हो
ऐ दीप आज कुछ यूँ दहको
Friday, November 6, 2015
एक ख़्वाहिश
तुम नहीं आये तो हँसता हुआ चमन सारा
एक ही रात में वीरान हो गया जानां
एक गुल भी न बचा बाद ए बहाराँ न रही
ख़ाक़ उड़ती रही कोई रंग न खुशबू बाक़ी
अब तो आ जाओ कि गुलशन की ख़ैर है तुमसे
शाख़ की गुल की हवाओं की ख़ैर है तुमसे
सबसे बढ़कर मेरी सांसों की ख़ैर है तुमसे
2008
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