Wednesday, December 27, 2017

मुहब्बत की आख़िरी शाम

मुहब्बत की वो आख़िरी शाम
तुम्हारी मुन्तज़िर आँखें
सुलगते होंठ आतिशी रुख़सार
मुंडेरों पर लटकती फूल की शाखें
महकता जिस्म बिखरते गेसू
लाल रंगों में नहाई हुई तुम
और हद दर्ज़ा बिखरता हुआ मैं
मेरी बाहों में समाई हुई तुम
और हर आन लरज़ता हुआ मैं
तेरी आँखों से बरसते वो शबनमी आँसू
अपनी आहों के अलाव में सुलगता हुआ मैं
लफ़्ज़ दर लफ़्ज़ ख़त्म होती वो कहानी भी
साँस दर साँस ख़त्म होती ज़िंदगानी भी

साल दर साल बिछड़ना था जिसके दामन में
वो शाम
ऐसा ही इक रिश्ता छोड़ गई थी हमारे दरमियाँ
जिसकी डोर थामे हुए
जाने कितने जन्मों का हिज्र काटना है मुझे
अगर मुमकिन हो
मेरी सज़ा मुख़्तसर कर दो
अगर मुमकिन हो

Friday, December 1, 2017

आलम ए तन्हाई

आज फिर कूचा ए जानाँ में रक़्स करता हुआ
एक आवारा मुसाफ़िर की तरह गुज़रा है
वो एक नाम पशेमाँ हुआ था जिसपे तू
वो एक रंग जो गालों पे कभी उभरा था
वो हमकलाम तेरा, नक़्श ए जबीं था जो कभी
जो तेरे दिल की रियासत का शाहज़ादा था
तेरी ख़ुशबू से बंधा था कि जिसका हर लम्हा
तेरी तवीलतर रातों का इक सितारा था
जो तेरे बाग़ में खिलता था फूल की सूरत
बिखर गया है वो सूखे गुलाब की तरह
जो चाहतों का तेरी इक अकेला मरकज़ था
लुटा चुका है वो सरमाया ए जाँ तेरी ख़ातिर

वो जो इक वक़्त में महफ़िल की जान होता था
वो तेरे बाद बहुत कम किसी से मिलता है
अब उसे फ़र्क़ कहाँ कब किसी से पड़ता है
कि उसके पास बचा कोई नहीं कोई नहीं
वादी ए इश्क़ में मिस्ल ए ग़ुबार उड़ता है
वो जिसका तेरे सिवा कोई नहीं कोई नहीं

Sunday, October 8, 2017

कविता के लिए

मेरी हमनफ़स
अभी दो चार बरस पहले तक
मेरे वीरान दिल की धरती पर
किसी ख़ुशबू किसी भी फूल का
कोई न इमकां था
वफ़ा की सात क़समें और तुम्हारा हाथ
जब मुझको मयस्सर हुआ
तो उस एक रात में जाने
कितने सूरज चाँद मेरी दिल ज़मीं पर
यूँ चमक उट्ठे
कि जैसे रोशनी का इक शहर तामीर होता है
वफ़ा की राह में इक इक क़सम यूँ साथ चलती है
कि जैसे तुम बहुत नाज़ुकरवी से साथ रहती हो
तुम्हारी माँग में अफ़शां तुम्हारे हाथ का कँगन
तुम्हारी रेशमी साड़ी वो माथे का हसीं टीका
गुलाब ओ ख़्वाब का मौसम
ये सारे मिलके कहते हैं
मुझे इक़रार करना है

मुझे इक़रार करना है
मुहब्बत के हसीन ओ तर गुलाबी मौसमों में
तुम्हारे साथ रहना है
मुझे इक़रार करना है
कि मेरी ये नज़र जिस जा भी उठती है
तुम्हारे लम्स को बेचैन रहती है
मुझे इक़रार करना है
कि जीवन में कोई रस्ता
अकेले कट नहीं सकता

सो मैं इक़रार करता हूँ
गवाही चाँद की ले लो

8oct 2017

Saturday, August 12, 2017

मेरी ख़्वाहिश

कोई ऐसी ग़ज़ल कहना
मुहब्बत नाम हो जिसका

हरेक मिसरे में इश्क़ का इक चश्मा बहता हो
मुहब्बत सांस लेती हो रदीफ़ ओ क़ाफ़िए में
हो मतले में तुम्हारी ज़ुल्फ़ के ख़म, जाम बहते हों
तो मक़्ते में तेरे रुख़सार की ख़ुशबू समायी हो

कोई एक शेर ऐसा हो
कि जिसमें बारिशों की बात होती हो
तेरी ज़ुल्फ़ों से गिरती शबनमी बूंदों के किस्से हों
गुलाबी आरिज़ों पे अब्र का टुकड़ा दिखाना तुम
वो रिमझिम के तरानों में कोई मल्हार गाना तुम

बिखरती रात में जब फ़ैज़ की नज़्मों का ज़िक्र आए
तो एक मिसरा बनाना तुम
फ़िराक़ ओ वस्ल के क़िस्से
सितारों, शबनमी रातों का ज़िक्र और फूल के क़िस्से
आरज़ू, चाँदनी और कहकशाँ की बात भी आए

सुनो ऐसा ही कुछ कहना

आख़िरश बात इतनी है
मेरी नज़्मों से बढ़कर हो
कोई ऐसी ग़ज़ल कहना
मुहब्बत नाम हो जिसका

August 12, 2017

Friday, July 21, 2017

इजी चेयर

तुम और वो इजी चेयर
बज़ाहिर तो वहीं छूट गई थीं
शायद तुमने ग़ौर से नहीं देखा
कि मैं अब भी वहीं बैठा हूँ
तुम्हारे हिज्र की रातों के जलते चराग़ों की तरह
आज तक जल रहा हूँ
मैं वहीं तो हूँ
तुमने महसूस तो किया होगा
तुम्हारे दर्द में लिपटी उदास शामों में
किसी किताब के अंदर बिखरते लफ़्ज़ों में
उसी टेबल के कोने पर, उन्ही फूलों की ख़ुशबू में
तुम्हारे रेशमी आँचल की हर सिलवट में जिंदा हूँ
मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारी सुरमगीं आंखों की उलझन में
मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारी नज़्म के हरेक क़तरे में
मैं, वहीं तो हूँ
तुमने महसूस तो किया होगा

Thursday, July 20, 2017

पहला तोहफ़ा

तुम्हे याद है अब भी
वो सफ़ेद लिबास
कितनी चाह से तुमने पहना था

तुम्हे याद है अब भी
मेरे चेहरे का वो बुझता मंज़र
सफ़ेद रंग मुझे नापसंद है
तुम्हे मालूम था शायद

तुम्हे याद है अब भी
मैं कुछ भी तो नहीं बोला
और तुम दो मिनट रुकने का कहकर
ख़ामोशी से पलट गई थीं
और जब लौट कर आयीं
तो...
वो सितारों वाली काली साड़ी
तुमपे कितनी अच्छी लगती थी

तुम्हे याद है अब भी
कि उस दिन पहली बार
तुम्हारे माथे पर अपने प्यार के कच्चे रँग से
नज़्म के दो मिसरे लिक्खे थे
शायद तुमको याद हो अब भी

लेकिन मुझको याद है अब भी
उन हेज़ल आँखों मे कुछ क़तरे आँसू के
उन होठों पर नर्म कँपकँपी
शर्म ओ हया के गुलाब मौसम

शायद तुमको याद नहीं हो
लेकिन मुझको याद है अब भी

Thursday, July 6, 2017

ख़ौफ़

मुझे ख़ुद से
बज़ाहिर तो कोई शिक़वा नहीं लेकिन
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
मुझे ऐसा क्यूँ लगता है
कि मेरे दिल के दरिया में
तुम्हारे नाम की लहरें
समाअत के किसी लम्हे में
तुम्हारे नाम लिक्खी सारी नज़्में
ख़ुद में ग़र्क ना कर लें
मेरे सरमाया ए जाँ को
मुक़म्मल मौत न दे दें
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
कहीं ऐसा न हो जाए

तभी शायद
मेरे लफ़्ज़ों के फूलों पर
तेरी आवाज़ की रिमझिम
बहुत दिन से नहीं उतरी

6 july 2017

Tuesday, April 11, 2017

रक़्स-ए-मुहब्बत

मेरी रग रग में
तेरी मुहब्बत का रक़्स जारी है
साँस के लम्स से हर ज़र्रा पिघलने लगा है
तेरी ख़ुशबू ए बदन से
मेरे इश्क़ का हर एक मौसम महकने लगा है
तेरे लहजे की शराब
मेरे होठों पे दहकने लगी है
तेरी ज़ुल्फ़ों की घटा
मेरे दश्त ए वीरां पे बरसने लगी है
तेरी मख़्मूर निगाहें मेरी निगाहों में
क़तरा क़तरा बिखरने लगी हैं
तेरी मुहब्बत
मेरे जिस्म में सफ़र करने लगी है

एक ख़्वाब ने दस्तक दी थी कल

Saturday, March 18, 2017

वादा

यही तो तय हुआ था ना
कि हम अब ख़ुश रहेंगे
यही वादा किया था ना
कोई मौसम भी मेरी याद का
तुम हँस के सह लेना
तो देखो
मेरी आँखों को देखो तुम
ये कितनी पुरसुकूँ हैं
मेरे होठों की गहरी मुस्कुराहट
अब नहीं छुपती
मेरे चेहरे को भी देखो
ये कितना शोख़ लगता है
अगर वादा निभाना था
तो वादा कर दिया पूरा

मगर जानाँ
फ़राग़त के किसी मौसम में
मेरी नज़्म तुम पढ़ना
तुम्हें महसूस तो होगा
कहीं लहजे का फ़ीकापन
कहीं पे दर्द का दरिया
कहीं आँसू की बौछारें
कहीं रोता हुआ नग़मा
कहीं पे हिज्र का सहरा

सुनो तुम नज़्म मत पढ़ना

2007