Friday, November 18, 2016

एक ग़ज़ल

मुझे महसूस करना हो तो कर लो
हवा के साथ बहता जा रहा हूँ

तुम्हारे हुस्न की रानाई लेकर
गुलों में रंग भरता जा रहा हूँ

मुझे अपनी रग़ों में क़ैद कर ले
तेरी हद से निकलता जा रहा हूँ

कभी जूड़े में मुझको भी सजा लो
मैं ख़ुशबू हूँ बिखरता जा रहा हूँ

सदा ख़ामोश लम्हों की सुनोगे
सो ख़ामोशी में ढलता जा रहा हूँ

Tuesday, September 27, 2016

तुम और मैं

तुम और मैं
सितारों की तरह हैं
जिनमें बज़ाहिर तो कोई फ़ासला नहीं होता
पर हक़ीक़तन
हज़ारों सालों की दूरियाँ होती हैं
तुम और मैं
हां तुम और मैं
उन्हीं सितारों की तरह हैं

27 Sep 2016

Friday, September 16, 2016

तुमने पूछा था

तुमने कल फ़ोन किया था
और पूछा था ना
कि तुम कैसे हो
तो सुनो

तुमने उस पेड़ को देखा है
जो बारिश की चाह में
दिन रात जलता है
वो आवारा बादलों को
यूँ तकता है मानो
वो बरस पड़ेंगे
मैं वैसा हूँ

तुमने उस दरिया को देखा है
जो समन्दर की चाह में
न जाने कितने हज़ार मील का सफ़र करता है
और हिज्र की लम्बी घड़ियां बिताता है
और सूख जाता है
मैं वैसा हूँ

तुमने वो रात तो महसूस की होगी
दर्द में सिमटी घुलती हुई रात
जब चाँद भी न निकले
कोई आवारा सड़कों पर
उदास नग़मा छेड़ दे
और नींद न आए
मैं वैसा हूँ

तुमने पूछा था ना
कि मैं कैसा हूँ

16 sep 2016

Sunday, September 11, 2016

हद

मैं तुम्हें भूलने की आख़िरी हदों में हूँ
तो यूँ करना
मुझे अब दर्द मत देना
मेरी साँसों में मत बहना
मुझे महसूस मत करना
मुझे एहसास की शिद्दत से ज़्यादा चाहने का जुर्म मत करना
ये आँखें ख़ून रोएँगी

मैं तुम्हें भूलने की आख़िरी हदों में हूँ
तो यूँ करना
मुझे आवाज़ मत देना
सुलगती रात में जब चाँदनी तुमको जला डाले
मुझे आवाज़ मत देना
वो दरिया गर कभी आवाज़ दे तो
तुम मुकर जाना
मुझे मुहब्बत की दास्ताँ से निकाल देना

10 sep 2016

Sunday, August 28, 2016

कमरा

एक अरसा हुआ है जबसे
उस कमरे का दरवाज़ा बंद है
वो इक कोने में रक्खी अलमारी में
न जाने कितने अहल ए अदब के दीवान
परत दर परत इक दूसरे पर जमे हुए हैं
वो कुर्सी पर रखा गिटार अब भी वहीं है
उस दिन तुम्हारी धुन बजाते हुए
उसका एक तार टूट गया था ना
वो अब तक जुड़ नहीं पाया
और उस कैनवास पर जो रंग बिखरे थे
वो पक्के हो गए हैं
तुम्हारी उँगलियों की छाप अब तक वैसी ही है
उसी कैनवास के पास वो डायरी भी है
जिसमे कुछ अधूरी नज़्मों की कहानियाँ थीं
तुमने भी तो एक नज़्म उस डायरी में लिखी थी
और इक गुलाब का तोहफ़ा उसमे डाल दिया था

बिखरी अलमारी, टूटे तार, बेरंग कैनवास
फटी डायरी और सूखा गुलाब
बहुत दिन बाद देखे हैं
आज बहुत दिन बाद तुम्हारी याद आई है

28Aug2016

Saturday, August 6, 2016

बूँद

इक बूँद का तोहफ़ा भेजा है
उस ख़्वाब नगर के बासी ने
उस देस के मौसम फिर मुझको
संदेसा उसका लाए हैं
उसकी धानी रंग चुनरी के
सब रंग चुरा कर लाए हैं
उस मिट्टी की महकारों ने
भीगे मन को पुरक़ैफ किया
उन भीगे से रुख़सारों ने
दिल के आँगन में
तेरी ख़ुशबू का भी इक पेड़ लगाया है
वो बूँद जो तेरे माथे से फिसली थी
तेरे होंठों तक
वो मोती बन कर यादों की सीपी में
कब की क़ैद हुई
ये बूँद जो तूने भेजी है
शायद
उस लम्हे का सरमाया हो
ए ख़्वाब नगर के बाशिंदे
क्या फिर से तूने मुझको मोती भेजा है!!

6aug 2016

Sunday, July 31, 2016

एतराफ़

मेरी हमसुख़न मेरी हमनवा
ये जो दश्त ए दिल ए वीरां है
ये तो कब का उजड़ चुका है
नई रुतों के बहार मंज़र
ये इसपे अपनी मुहब्बतों के
गुलाब नक़्शे बिछा रहे है
पुरानी नज़्मों की हर सतर पर
नई कोई दास्ताँ लिख रहे हैं

मगर अभी तो
पुरानी नज़्मों की हर कहानी
हयात लम्हों में जी रही है
मेरी रगों में धड़क रही है

तो कैसे बे क़ैफ़ सुख़न के पर्चे
नई मुहब्बत के आबशारों में भीग जाएँ
जो लम्हा लम्हा सुलग रही है
वो आग कैसे क़रार पाए

31 july 2016

Monday, July 4, 2016

ऐ इश्क़

ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल

फैली थी जहाँ पहले पहल प्यार की ख़ुशबू
उस रंग की, उसके लब ओ रुख़्सार की ख़ुशबू
फैली थी जहाँ ख़ुशबू ए दोशीज़ा ग़ज़ल चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल

बिखरी थीं जहां ग़ालिब ओ मोमिन की कहानी
आई थी जहाँ दाग़ के शेरों पे जवानी
सजती थी जहाँ महफ़िल ए यारान ए सुख़न चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल

एक दर्द की शम्अ थी जो बुझ बुझ के जली थी
उस चाँद की आँखों में क़यामत की नमी थी
आ फिर से बना दें वहाँ जन्नत का महल चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल

दुनिया की किताबों में जो लिक्खा है मिटा दें
वो धूल जो रस्तों पे थी माथे पे सजा दें
आ फिर से लिखें एक नई दास्तान चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल

July 2016

Thursday, June 9, 2016

बददुआ

मुझे बददुआ न दो
मैं उसी दर्द की दहलीज़ पे बिखरा हुआ हूँ
उम्र ए नौ-रंग ने जिस जा तुम्हारा नाम लिया
चराग़ ए इश्क़ जलाया था सरे शाम जहां
अब वहां कोई नहीं अजनबी कदमों के सिवा
झिलमिलाते हुए आवारा सितारों के सिवा

मैं जो ग़ुम हो गया था शहर की रंगीनियों में
तुम्हारे इश्क़ की हसरत को न समझ पाया
तो ज़ाहिर है कि ये तन्हाईयाँ जो फैली थीं
इक न इक दिन तो इन्हें मुझमें उतर जाना था
और इक रोज़ किसी दर्द की गहराई में
मिसाल ए शम्स ओ क़मर मुझको डूब जाना था
तो ख़ुदा के लिए
मुझे बददुआ न दो

8june 2016

Saturday, April 16, 2016

इक ख़त

हां मुझे इक नज़्म का मिसरा मिला है
तुम्हारी नज़्म में
उन सुनहरे आबशारों का तो कोई ज़िक्र ही न था
जो कड़े वक़्त में भी मेरी ज़बीं पर
साया करते थे
कलाई के उस कंगन का भी नाम ओ निशाँ न था
कि जिसमें उलझ कर तुम्हारी रेशमी साड़ी का पल्लू
सबा के इक इशारे पर मुझे महका सा जाता था
अपने माथे की बिंदी का भी तो तुम ज़िक्र करतीं
तुम्हारी मांग में अफ़शाँ क्या अब भी रक़्स करता है
क्या अब भी ज़िक्र ए माज़ी पर
तुम्हारी आँख में कुछ कुछ चमकता है

तुम्हारी नज़्म में कुछ बात बाक़ी थी
मैं अपनी नज़्म में तुमको मुक़म्मल कर रहा हूँ
16 Apr 2016

Sunday, March 13, 2016

चराग़ ए यादां

आज मेरे शहर ए दिल में
बारिशों का मौसम है
कुछ चराग़ ए यादां है
कुछ विसाल के लम्हे
फिर जला लिए मैंने
सोचता हूँ ऐसे में
तेरी याद का सहरा
कैसे पार करना है
सोच के दरीचों पर
कौन ख़ाक़ डालेगा
बारिशों को मौसम भी
मुझको मार डालेगा

June 2015

Tuesday, February 23, 2016

पल

कभी भी कहीं भी कैसे भी
मिल सकते हैं वो पल
जो हमने साथ गुज़ारे थे
मगर बस शर्त इतनी है
कि तुम यादों की रिमझिम बारिशों में
भीगना चाहो

Sunday, February 21, 2016

मंज़र

समंदर चुप है बहुत खामोश है आज
न कोई बात करता है
न मुझको देखता है
किनारे भी बड़े तनहा पड़े है
बड़ा मानूस मंज़र है ये सारा
बड़ी आहिस्तगी से
मेरे अंदर का मंज़र
सारे आलम पे छा गया है
2012

Friday, February 19, 2016

गुज़री हुई रात

रात यूँही गुज़र जाती है
न कोई निशान छोड़ती है पीछे
न कोई ख़्वाब बुनती है
बस आधी अधूरी सी आस में
लिपटा हुआ एक पल थमा देती है
कहती है कल फिर मिलेंगे
मुद्दतों से ऐसी ही रातें गुज़ारता हूँ मैं
2012

Thursday, February 18, 2016

ख़्वाब और मुहब्बत

उस दिन ऐसा ही मौसम था
काले बादल पूरे आकाश पे छाये थे
ठंडी ठंडी हवा के झोंके झूम रहे थे
और समंदर लहरों लहरों मचल रहा था
उस मौसम में साहिल पर एक शाम जवां थी
कोई तनहा ठंडी रेत पे टहल रहा था
गीला चेहरा बिखरे गेसू भीगी आँखें
जैसे कोई ख़्वाब मुहब्बत ढूंढ रहा हो
2011

Friday, February 12, 2016

कुछ ख़्वाब बुनो

कुछ ख़्वाब बुनो जाना
खुशबू और रंग बहारों के
कुछ यादों के कुछ फूलों के
कुछ राग रंग मल्हारों के
बारिश की गिरती बूदों के
सर्दी में ठिठुरती शामों के
गर्मी की मचलती सुबहों के
और मेरे भी
तन्हा तन्हा
कुछ ख्वाब बुनो
2011

उदास हूँ मैं

कई दिनों से,
उदास हूँ मैं
तुम्हारी खुशबू के नरम झोंके
उदास नज़्मों के सुर्ख़ पन्ने
गुलाब रुत के वो फूल सारे
सियाह रातें, बेरंग मंज़र
समन्दरों की तमाम लहरें
बुझे बुझे से ये चाँद तारे
ये कह रहे हैं
मेरी मुहब्बत उजड़ गयी है
इसलिये तो
कई दिनों से उदास हूँ मैं

Wednesday, February 10, 2016

सुजॉय के नाम

जो नज़र में है उसे देखना
उसे देखना फिर ग़ौर से उसे सोचना
फिर सोच में अमल के रस्ते खोजना
तेरी अज़्मतें तेरे हौसले
मैं इससे ज़्यादा क्या कहूँ
मैं तो ये कहूँ
ये जो हौसलों का मेयार है
ख़ुदा करे
यूँ ही अज़्मतों की नज़र रहे
तेरा हर्फ़ हर्फ़ हो दिल सुख़न
तेरी बात बात हो सुर्खरू
तू जो भी चाहे मिले सदा
यही मेरे दिल का बयान है

Monday, February 8, 2016

सुमैया

मुझे इक नज़्म लिखनी है
मुझे बोला है उसने भाई मेरे
मेरे जन्मदिन पर नाम मेरे नज़्म तुम लिक्खो
तो लिखता हूँ

मुझे लिखना है चिड़ियों की चहकती तान का किस्सा
मुझे लिखना है तेरी राह में कोई ख़ार न आये
मुझे दरिया की लहरों को समन्दर नाम देना है
मुझे वो वक़्त लिखना है जो रौशन कर दे तेरी शाहराहों को
मुझे वो फूल लिखने हैं जो महका दें तेरे हर एक लम्हें को
मुझे वो रंग लिखना है जो चमके लम्हा दर लम्हा जबीं पर
मुझे ख़ुशबू भी लिखनी है जो तेरे हर सुख़न में जज़्ब हो जाये

मुझे लिखना बहुत कुछ है मगर ये लफ्ज़ मेरे
तेरे रौशन सरापे की मुक़द्दस रौशनी को लिख नहीं सकते
मगर तुम जान लो इतना
कि मेरी बहन, मेरी हमसुख़न

तेरी हर रह में रौशन कहकशां हो
तेरा हर इक सुख़न हो जाविदानी
तेरी मुस्कान भारी हो गुलों पर
तेरा गुलनार चेहरा यूँही दमके
ख़ुदा से बस ये ही मेरी दुआ है

Tuesday, February 2, 2016

रूह कहती है

दिल तो कहता है अब तेरी जानिब
फिर कभी लौट कर नहीं आना
रूह कहती है कि खामोश रहो
नक़्श किस याद का मिटाओगे
ख़्वाब किस तौर भूल जाओगे
इश्क़ सफ़हे नहीं किताबों के
जिनको एक बार पढ़ा भूल गए
इश्क़ तो ज़ीस्त का उन्वान है
क्यूँ सुलगते हैं बिना उसके ये दिन रात कहो
क्यूँ किसी तौर उसे भूल नहीं पाते हो
रूह कहती है कि खामोश रहो
ख़्वाब के साथ ही सफ़र पे रहो
2012

Thursday, January 21, 2016

चलो फिर से

चलो एक बार कुछ ऐसा करलें
कि हम दोनों एक लम्हा ऐसा बिताएं
जो हज़ार सालों पर भारी हो
जिसे चाह कर भी हम दोनों
खुद से अलग न कर पाएं
चलो ये अहद फिर से बांधें
चलो फिर से ......
यही बातें हुई थीं ना
जब हम आखिरी बार मिले थे
2012

Sunday, January 10, 2016

काश

साहिल की ठंडी रेत पर
साथ साथ क़दम बढ़ाते
जब तुमने रुक कर
मुझसे कहा था
काश ये वक़्त यहीं थम जाये
चंदा तारे बहता दरिया ठंडा साहिल
एक तेरे आने की ख़्वाहिश में
जाने कबसे रुके हुए हैं
2011

Tuesday, January 5, 2016

तुम्हें याद होगा

अगर सितारों की हदों तक निगाह डालो
तो इस ज़मीं से उस आसमां तक
हरेक मंज़र मेरी मुहब्बत से तर मिलेगा
ये बहता दरिया ये ठहरी झीलें
उफान भरता हुआ समंदर
ये सारे मेरी मुहब्बतों के हैं इस्तआरे
हवाओं पे लिखी सारी तहरीरों को गर पढ़ो तुम
तो जान लोगे
वो सारी बातें जो अनकही थीं
तुम्हे मिलेंगी
हवाओं पे लिखी तहरीरों को भी पढ़ना
ये फूल कलियाँ ये बाग़ सारे बहार मंज़र
तुम्हारी चाहत में खिल रहे हैं
तुम आओ देखो कोई कहाँ तक
तुम्हारी बातें हरेक सतर में यूँ लिख रहा है
कि जैसे अब तक
तुम्हे ये सब कुछ भी याद होगा
2013

Friday, January 1, 2016

प्यार का उनवां

तुम्हें गर दर्द लिखना हो
तो यूँ करना
किसी काग़ज़ के टुकड़े को
हवाओं के इशारों पर बहा देना
उसे कुछ नाम न देना
वो काग़ज़ भीग जाये जब
किसी खामोश लम्हे में
चराग़ों की हदो पर रखके पढ़ लेना
मेरे हर दर्द का किस्सा
बहुत रोशन लिखा होगा

तुम्हे गर रात लिखनी हो
मेरी आँखों के कोनो पर
कोई एक झील का क़तरा
कोई खामोश सा लम्हा
हज़ारों साल तक ठहरे
उसे महसूस कर लेना
मेरी रातों में बहते दर्द का
हर राज़ पा लोगे

मगर जानां
तुम अपनी डायरी में जब भी लिक्खो
प्यार का उनवां
तो शाम ए आखिर का वो पल भी लिखना
मुहब्बतों के दयार में जब
दो रूहें हम आगोश हो गई थीं
वो पल अभी तक साहिल ए समंदर
वहीं पड़े हैं
उन्हें उठाकर तुम अपने सफहों में दर्ज करना
न जाने कब की उदास रूहें क़रार पा लें
2013