ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल
फैली थी जहाँ पहले पहल प्यार की ख़ुशबू
उस रंग की, उसके लब ओ रुख़्सार की ख़ुशबू
फैली थी जहाँ ख़ुशबू ए दोशीज़ा ग़ज़ल चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल
बिखरी थीं जहां ग़ालिब ओ मोमिन की कहानी
आई थी जहाँ दाग़ के शेरों पे जवानी
सजती थी जहाँ महफ़िल ए यारान ए सुख़न चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल
एक दर्द की शम्अ थी जो बुझ बुझ के जली थी
उस चाँद की आँखों में क़यामत की नमी थी
आ फिर से बना दें वहाँ जन्नत का महल चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल
दुनिया की किताबों में जो लिक्खा है मिटा दें
वो धूल जो रस्तों पे थी माथे पे सजा दें
आ फिर से लिखें एक नई दास्तान चल
ऐ इश्क़ मुझे फिर से उसी राह पे ले चल
July 2016