Friday, July 21, 2017

इजी चेयर

तुम और वो इजी चेयर
बज़ाहिर तो वहीं छूट गई थीं
शायद तुमने ग़ौर से नहीं देखा
कि मैं अब भी वहीं बैठा हूँ
तुम्हारे हिज्र की रातों के जलते चराग़ों की तरह
आज तक जल रहा हूँ
मैं वहीं तो हूँ
तुमने महसूस तो किया होगा
तुम्हारे दर्द में लिपटी उदास शामों में
किसी किताब के अंदर बिखरते लफ़्ज़ों में
उसी टेबल के कोने पर, उन्ही फूलों की ख़ुशबू में
तुम्हारे रेशमी आँचल की हर सिलवट में जिंदा हूँ
मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारी सुरमगीं आंखों की उलझन में
मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारी नज़्म के हरेक क़तरे में
मैं, वहीं तो हूँ
तुमने महसूस तो किया होगा

Thursday, July 20, 2017

पहला तोहफ़ा

तुम्हे याद है अब भी
वो सफ़ेद लिबास
कितनी चाह से तुमने पहना था

तुम्हे याद है अब भी
मेरे चेहरे का वो बुझता मंज़र
सफ़ेद रंग मुझे नापसंद है
तुम्हे मालूम था शायद

तुम्हे याद है अब भी
मैं कुछ भी तो नहीं बोला
और तुम दो मिनट रुकने का कहकर
ख़ामोशी से पलट गई थीं
और जब लौट कर आयीं
तो...
वो सितारों वाली काली साड़ी
तुमपे कितनी अच्छी लगती थी

तुम्हे याद है अब भी
कि उस दिन पहली बार
तुम्हारे माथे पर अपने प्यार के कच्चे रँग से
नज़्म के दो मिसरे लिक्खे थे
शायद तुमको याद हो अब भी

लेकिन मुझको याद है अब भी
उन हेज़ल आँखों मे कुछ क़तरे आँसू के
उन होठों पर नर्म कँपकँपी
शर्म ओ हया के गुलाब मौसम

शायद तुमको याद नहीं हो
लेकिन मुझको याद है अब भी

Thursday, July 6, 2017

ख़ौफ़

मुझे ख़ुद से
बज़ाहिर तो कोई शिक़वा नहीं लेकिन
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
मुझे ऐसा क्यूँ लगता है
कि मेरे दिल के दरिया में
तुम्हारे नाम की लहरें
समाअत के किसी लम्हे में
तुम्हारे नाम लिक्खी सारी नज़्में
ख़ुद में ग़र्क ना कर लें
मेरे सरमाया ए जाँ को
मुक़म्मल मौत न दे दें
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
कहीं ऐसा न हो जाए

तभी शायद
मेरे लफ़्ज़ों के फूलों पर
तेरी आवाज़ की रिमझिम
बहुत दिन से नहीं उतरी

6 july 2017