महके जबीं पे रात दिन शम्स ओ क़मर कोई तो हो
गाये जो फ़ैज़ की ग़ज़ल शाम ओ सहर कोई तो हो
हमने सुख़न तराश कर उसको रंग ए ग़ज़ल किया
हुस्न ए ग़ज़ल के वास्ते हुस्न ए बहर कोई तो हो
ऐसे शहर में क्या जियें जिसमें तेरा बसर न हो
याद हो तेरी जा ब जा ऐसा शहर कोई तो हो
उसकी अदा ए नाज़ का मिलता नहीं कोई बदल
उसकी अदा ए नाज़ का इक हमसफ़र कोई तो हो
ये क्या कि अर्ज़ ए शौक़ पर तुमने निगाह फेर ली
महफ़िल ए रँग ए यार में अहल ए नज़र कोई तो हो
शहर ए फ़िराक़ ए यार में रातें गुज़ार दी गईं
जलवा ए हुस्न ए यार से रोशन सहर कोई तो हो
- सुख़नवर