Monday, December 14, 2015

तुम्हारे इंतज़ार का मौसम

समंदर पर बिताये सुनहरी ख्वाब सारे
कहीं सूरज में जाके खो गए हैं
उन्ही ख़्वाबों में अक्सर जागना पड़ता है पहरों
जो हमने साथ मिलकर तय किये थे
उन्ही रस्तों पे चलना पड़ रहा है
बहुत तनहा मुसाफत हो गई है
इन्ही खामोशियों के साये साये
उन्ही रस्तों पे फिर से लौट आओ
तुम्हारे इंतज़ार का मौसम
कई जन्मों से
एक ही मक़ाम पर ठहरा हुआ है
2012

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