Tuesday, December 8, 2015

क़तरा क़तरा

आज फिर ख़्वाबों की महफ़िल में सुलगना होगा
आज फिर खुशबू की आंधी में बिखरना होगा
आज फिर भूली हुई याद के किनारों पर
बैठके क़तरा क़तरा लम्हा लम्हा
खुद को टुकड़ों में बहाना होगा
आज फिर रात की रेशम में पिघलना है मुझे
चाँद की बाँहों में सर रखके सिमटना है मुझे
आज फिर महकी हुई रात में जलना होगा
2009

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