Thursday, June 9, 2016

बददुआ

मुझे बददुआ न दो
मैं उसी दर्द की दहलीज़ पे बिखरा हुआ हूँ
उम्र ए नौ-रंग ने जिस जा तुम्हारा नाम लिया
चराग़ ए इश्क़ जलाया था सरे शाम जहां
अब वहां कोई नहीं अजनबी कदमों के सिवा
झिलमिलाते हुए आवारा सितारों के सिवा

मैं जो ग़ुम हो गया था शहर की रंगीनियों में
तुम्हारे इश्क़ की हसरत को न समझ पाया
तो ज़ाहिर है कि ये तन्हाईयाँ जो फैली थीं
इक न इक दिन तो इन्हें मुझमें उतर जाना था
और इक रोज़ किसी दर्द की गहराई में
मिसाल ए शम्स ओ क़मर मुझको डूब जाना था
तो ख़ुदा के लिए
मुझे बददुआ न दो

8june 2016