कभी भी कहीं भी कैसे भी
मिल सकते हैं वो पल
जो हमने साथ गुज़ारे थे
मगर बस शर्त इतनी है
कि तुम यादों की रिमझिम बारिशों में
भीगना चाहो
Tuesday, February 23, 2016
पल
Sunday, February 21, 2016
मंज़र
समंदर चुप है बहुत खामोश है आज
न कोई बात करता है
न मुझको देखता है
किनारे भी बड़े तनहा पड़े है
बड़ा मानूस मंज़र है ये सारा
बड़ी आहिस्तगी से
मेरे अंदर का मंज़र
सारे आलम पे छा गया है
2012
Friday, February 19, 2016
गुज़री हुई रात
रात यूँही गुज़र जाती है
न कोई निशान छोड़ती है पीछे
न कोई ख़्वाब बुनती है
बस आधी अधूरी सी आस में
लिपटा हुआ एक पल थमा देती है
कहती है कल फिर मिलेंगे
मुद्दतों से ऐसी ही रातें गुज़ारता हूँ मैं
2012
Thursday, February 18, 2016
ख़्वाब और मुहब्बत
उस दिन ऐसा ही मौसम था
काले बादल पूरे आकाश पे छाये थे
ठंडी ठंडी हवा के झोंके झूम रहे थे
और समंदर लहरों लहरों मचल रहा था
उस मौसम में साहिल पर एक शाम जवां थी
कोई तनहा ठंडी रेत पे टहल रहा था
गीला चेहरा बिखरे गेसू भीगी आँखें
जैसे कोई ख़्वाब मुहब्बत ढूंढ रहा हो
2011
Friday, February 12, 2016
कुछ ख़्वाब बुनो
कुछ ख़्वाब बुनो जाना
खुशबू और रंग बहारों के
कुछ यादों के कुछ फूलों के
कुछ राग रंग मल्हारों के
बारिश की गिरती बूदों के
सर्दी में ठिठुरती शामों के
गर्मी की मचलती सुबहों के
और मेरे भी
तन्हा तन्हा
कुछ ख्वाब बुनो
2011
उदास हूँ मैं
कई दिनों से,
उदास हूँ मैं
तुम्हारी खुशबू के नरम झोंके
उदास नज़्मों के सुर्ख़ पन्ने
गुलाब रुत के वो फूल सारे
सियाह रातें, बेरंग मंज़र
समन्दरों की तमाम लहरें
बुझे बुझे से ये चाँद तारे
ये कह रहे हैं
मेरी मुहब्बत उजड़ गयी है
इसलिये तो
कई दिनों से उदास हूँ मैं
Wednesday, February 10, 2016
सुजॉय के नाम
जो नज़र में है उसे देखना
उसे देखना फिर ग़ौर से उसे सोचना
फिर सोच में अमल के रस्ते खोजना
तेरी अज़्मतें तेरे हौसले
मैं इससे ज़्यादा क्या कहूँ
मैं तो ये कहूँ
ये जो हौसलों का मेयार है
ख़ुदा करे
यूँ ही अज़्मतों की नज़र रहे
तेरा हर्फ़ हर्फ़ हो दिल सुख़न
तेरी बात बात हो सुर्खरू
तू जो भी चाहे मिले सदा
यही मेरे दिल का बयान है
Monday, February 8, 2016
सुमैया
मुझे इक नज़्म लिखनी है
मुझे बोला है उसने भाई मेरे
मेरे जन्मदिन पर नाम मेरे नज़्म तुम लिक्खो
तो लिखता हूँ
मुझे लिखना है चिड़ियों की चहकती तान का किस्सा
मुझे लिखना है तेरी राह में कोई ख़ार न आये
मुझे दरिया की लहरों को समन्दर नाम देना है
मुझे वो वक़्त लिखना है जो रौशन कर दे तेरी शाहराहों को
मुझे वो फूल लिखने हैं जो महका दें तेरे हर एक लम्हें को
मुझे वो रंग लिखना है जो चमके लम्हा दर लम्हा जबीं पर
मुझे ख़ुशबू भी लिखनी है जो तेरे हर सुख़न में जज़्ब हो जाये
मुझे लिखना बहुत कुछ है मगर ये लफ्ज़ मेरे
तेरे रौशन सरापे की मुक़द्दस रौशनी को लिख नहीं सकते
मगर तुम जान लो इतना
कि मेरी बहन, मेरी हमसुख़न
तेरी हर रह में रौशन कहकशां हो
तेरा हर इक सुख़न हो जाविदानी
तेरी मुस्कान भारी हो गुलों पर
तेरा गुलनार चेहरा यूँही दमके
ख़ुदा से बस ये ही मेरी दुआ है
Tuesday, February 2, 2016
रूह कहती है
दिल तो कहता है अब तेरी जानिब
फिर कभी लौट कर नहीं आना
रूह कहती है कि खामोश रहो
नक़्श किस याद का मिटाओगे
ख़्वाब किस तौर भूल जाओगे
इश्क़ सफ़हे नहीं किताबों के
जिनको एक बार पढ़ा भूल गए
इश्क़ तो ज़ीस्त का उन्वान है
क्यूँ सुलगते हैं बिना उसके ये दिन रात कहो
क्यूँ किसी तौर उसे भूल नहीं पाते हो
रूह कहती है कि खामोश रहो
ख़्वाब के साथ ही सफ़र पे रहो
2012