मुझे ख़ुद से
बज़ाहिर तो कोई शिक़वा नहीं लेकिन
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
मुझे ऐसा क्यूँ लगता है
कि मेरे दिल के दरिया में
तुम्हारे नाम की लहरें
समाअत के किसी लम्हे में
तुम्हारे नाम लिक्खी सारी नज़्में
ख़ुद में ग़र्क ना कर लें
मेरे सरमाया ए जाँ को
मुक़म्मल मौत न दे दें
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
कहीं ऐसा न हो जाए
तभी शायद
मेरे लफ़्ज़ों के फूलों पर
तेरी आवाज़ की रिमझिम
बहुत दिन से नहीं उतरी
6 july 2017
No comments:
Post a Comment