Thursday, July 6, 2017

ख़ौफ़

मुझे ख़ुद से
बज़ाहिर तो कोई शिक़वा नहीं लेकिन
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
मुझे ऐसा क्यूँ लगता है
कि मेरे दिल के दरिया में
तुम्हारे नाम की लहरें
समाअत के किसी लम्हे में
तुम्हारे नाम लिक्खी सारी नज़्में
ख़ुद में ग़र्क ना कर लें
मेरे सरमाया ए जाँ को
मुक़म्मल मौत न दे दें
अजब इक ख़ौफ़ है दिल में
कहीं ऐसा न हो जाए

तभी शायद
मेरे लफ़्ज़ों के फूलों पर
तेरी आवाज़ की रिमझिम
बहुत दिन से नहीं उतरी

6 july 2017

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