Friday, July 21, 2017

इजी चेयर

तुम और वो इजी चेयर
बज़ाहिर तो वहीं छूट गई थीं
शायद तुमने ग़ौर से नहीं देखा
कि मैं अब भी वहीं बैठा हूँ
तुम्हारे हिज्र की रातों के जलते चराग़ों की तरह
आज तक जल रहा हूँ
मैं वहीं तो हूँ
तुमने महसूस तो किया होगा
तुम्हारे दर्द में लिपटी उदास शामों में
किसी किताब के अंदर बिखरते लफ़्ज़ों में
उसी टेबल के कोने पर, उन्ही फूलों की ख़ुशबू में
तुम्हारे रेशमी आँचल की हर सिलवट में जिंदा हूँ
मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारी सुरमगीं आंखों की उलझन में
मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारी नज़्म के हरेक क़तरे में
मैं, वहीं तो हूँ
तुमने महसूस तो किया होगा

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