तुम्हे याद है अब भी
वो सफ़ेद लिबास
कितनी चाह से तुमने पहना था
तुम्हे याद है अब भी
मेरे चेहरे का वो बुझता मंज़र
सफ़ेद रंग मुझे नापसंद है
तुम्हे मालूम था शायद
तुम्हे याद है अब भी
मैं कुछ भी तो नहीं बोला
और तुम दो मिनट रुकने का कहकर
ख़ामोशी से पलट गई थीं
और जब लौट कर आयीं
तो...
वो सितारों वाली काली साड़ी
तुमपे कितनी अच्छी लगती थी
तुम्हे याद है अब भी
कि उस दिन पहली बार
तुम्हारे माथे पर अपने प्यार के कच्चे रँग से
नज़्म के दो मिसरे लिक्खे थे
शायद तुमको याद हो अब भी
लेकिन मुझको याद है अब भी
उन हेज़ल आँखों मे कुछ क़तरे आँसू के
उन होठों पर नर्म कँपकँपी
शर्म ओ हया के गुलाब मौसम
शायद तुमको याद नहीं हो
लेकिन मुझको याद है अब भी
वाह ! क्या नज़्म सजाई है
ReplyDeleteनज़्म के दो मिसरे कमाल हुआ है भाई साहब 👌👌👌
ख़ूबसूरत..डूबता चला गया हर मिसरे के साथ
ReplyDeleteशायद तुमको याद नहीं हो
लेकिन मुझको याद है अब भी
वाहःहः
ReplyDeleteक्या कहने ।