Saturday, August 12, 2017

मेरी ख़्वाहिश

कोई ऐसी ग़ज़ल कहना
मुहब्बत नाम हो जिसका

हरेक मिसरे में इश्क़ का इक चश्मा बहता हो
मुहब्बत सांस लेती हो रदीफ़ ओ क़ाफ़िए में
हो मतले में तुम्हारी ज़ुल्फ़ के ख़म, जाम बहते हों
तो मक़्ते में तेरे रुख़सार की ख़ुशबू समायी हो

कोई एक शेर ऐसा हो
कि जिसमें बारिशों की बात होती हो
तेरी ज़ुल्फ़ों से गिरती शबनमी बूंदों के किस्से हों
गुलाबी आरिज़ों पे अब्र का टुकड़ा दिखाना तुम
वो रिमझिम के तरानों में कोई मल्हार गाना तुम

बिखरती रात में जब फ़ैज़ की नज़्मों का ज़िक्र आए
तो एक मिसरा बनाना तुम
फ़िराक़ ओ वस्ल के क़िस्से
सितारों, शबनमी रातों का ज़िक्र और फूल के क़िस्से
आरज़ू, चाँदनी और कहकशाँ की बात भी आए

सुनो ऐसा ही कुछ कहना

आख़िरश बात इतनी है
मेरी नज़्मों से बढ़कर हो
कोई ऐसी ग़ज़ल कहना
मुहब्बत नाम हो जिसका

August 12, 2017

5 comments:

  1. चश्मा,बारिश,नग़मा ,सितारे,शबनम और इश्क़ ! मह्ज़ूज़ लफ़्ज़ों का महफ़िले रक़्स है ये नज़्म ! एक ख़्वाब,एक ख़याल,एक ख़्वाहिश का ऐसा बज़्म जिसमें सरापा ग़ज़ल के
    अवतरण का इंतज़ार भी है और हर अंगों के नक़्श का ज़िक्र भी! हरेक सफ़ में कशिश करवटें लेती है । कहकशॉं के सयारों से अरमानों के मनाज़िर भी हैं, झिलमिल रौशनी में नहाए नेह के अप्रतिम उपहार भी ! ससंभ्रम आरज़ू भी है और मान मनव्वल का उभरा अक्स भी! अतिआह्लादकारी ! खूब ख़ूबसूरत नायाब ख़्यालों वाली नज़्म ! ख़ुशानसीब !!! बहुत बहुत मुबारकवाद सर💐☘️🌹🙏

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    1. आपका शुक्रिया, नज़्म कई दिन से ज़हन में रक़्सां थी, और कभी बारिश तो कभी फ़ैज़ की शायरी का हाथ पकड़ कर अपनी मंज़िल पर पहुंची

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  2. अपनी नज़्म में क्या ख़ूबसूरती से ग़ज़ल की बारीकियों का बखान किया ।
    वाहःहः बहुत ही उम्दा नज़्म।

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    1. शुक्रिया सुमन जी

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  3. बहुत ख़ूबसूरत नज़्म,बहुत ख़ूबसूरत ख़्वाहिश।

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