Sunday, October 8, 2017

कविता के लिए

मेरी हमनफ़स
अभी दो चार बरस पहले तक
मेरे वीरान दिल की धरती पर
किसी ख़ुशबू किसी भी फूल का
कोई न इमकां था
वफ़ा की सात क़समें और तुम्हारा हाथ
जब मुझको मयस्सर हुआ
तो उस एक रात में जाने
कितने सूरज चाँद मेरी दिल ज़मीं पर
यूँ चमक उट्ठे
कि जैसे रोशनी का इक शहर तामीर होता है
वफ़ा की राह में इक इक क़सम यूँ साथ चलती है
कि जैसे तुम बहुत नाज़ुकरवी से साथ रहती हो
तुम्हारी माँग में अफ़शां तुम्हारे हाथ का कँगन
तुम्हारी रेशमी साड़ी वो माथे का हसीं टीका
गुलाब ओ ख़्वाब का मौसम
ये सारे मिलके कहते हैं
मुझे इक़रार करना है

मुझे इक़रार करना है
मुहब्बत के हसीन ओ तर गुलाबी मौसमों में
तुम्हारे साथ रहना है
मुझे इक़रार करना है
कि मेरी ये नज़र जिस जा भी उठती है
तुम्हारे लम्स को बेचैन रहती है
मुझे इक़रार करना है
कि जीवन में कोई रस्ता
अकेले कट नहीं सकता

सो मैं इक़रार करता हूँ
गवाही चाँद की ले लो

8oct 2017

4 comments:

  1. ज़िंदाबाद ।
    क्या कहने
    सो मैं इक़रार करता हूँ
    गवाही चाँद की ले लो।
    बहुत उम्दा नज़्म सुख़नवर।

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  2. ज़िंदाबाद ।
    क्या कहने
    सो मैं इक़रार करता हूँ
    गवाही चाँद की ले लो।
    बहुत उम्दा नज़्म सुख़नवर।

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  3. गवाही चाँद की ....waah
    खूबसूरत नज़्म ज़नाब

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  4. वफ़ा की सात क़समें हों या पवित्र अग्नि के सात फेरे ! या फिर सीधा सा इकरार साथ साथ जीने का-साथ साथ रहने का- गुज़र करने का ! जीवन के हर मोड़ पर हरेक मौसम में हर उस कँवारे दिल के गोशे गोशे में चस्पाँ होता हैं अरमानों का दहकता सावन , उमंगों का महकता बसंत ! एक अफ़साना - तख़य्युल के उफूक पर सप्तरंगी ख़यालों में लिपटा-अंकुरित , पल्लवित, पुष्पित और फल्लवित होने के संकल्पों के साथ ! कितना अभिराम और हसीं है- नव सृजन , नव उन्मेष और नव उन्माद से सिंचित दो पाक रूहों का मिलन ! क़समें ,वादे ,प्यार ,वफ़ा ,उम्मीद ,उत्साह ,उल्लास ,और उर्ध्वगामी विचारों का रक़्स और एक अलसायी मादक सी तरंगायित स्वर लहरी ,जो आत्मा से नि:सृत हो खुले आकाश का आरोहन करती है- बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय ,लोकानुकम्पाय .....
    सुख-दुख,रोग-शोक, आनंद-उल्लास में सम्यक् हमनवॉं और हमनफस हुए बढ़ने का निश्चय है निकाह और विवाह!विशिष्ट रूपेण वहनार्थ जीवों का सम्मुच्चय ! एक आदिम संकल्प जो अभी तक संवाहित है हम और हमारे संसार में जिसे इमानदारी से जीवन में उतार लेना-धरती पर स्वर्ग की संकल्पना को साकार कर देना है !
    इन्हीं पुनीत संकल्पों से लबरेज़ यह नज़्म न सिर्फ एक नूतन पहल है वरन् अंतर के आबसारों का खुला आमंत्रण भी ! एक प्रेरणा जो सारे अवसादों के निराकरण का मूल मंत्र !
    ख़ू ब सू र त !

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