Friday, December 7, 2018

ग़ज़ल

वो बारिशों का हसीन मंज़र, तुम्हारी नज़रें झुकी झुकी सी
वो मेरा लहजा नया नया सा, तुम्हारी साँसें रुकी रुकी सी

उदास शामों की नर्मियों में वो सर्द रातों की सिलवटों में
तुम्हारी आहट की मुन्तज़िर हैं हमारी धड़कन थमी थमी सी

ज़मीन ए दिल पर चराग़ लम्हों का शामियाना बिछा रही हैं
तुम्हारी नज़रों की बेक़रारी, वो मुस्कुराहट दबी दबी सी

समाअतों में गूँजते है अभी तलक वो विसाल मौसम
तुम्हारी आवाज़ के नर्म साये, तुम्हारी सूरत खिली खिली सी

चलो कहीं और चल के बैठें, जगाएं सोई रुतों को जानाँ
पुकारती हैं तुम्हारे क़दमों को शाहराहें मिटी मिटी सी

गुलाब मौसम में साहिलों पर तुम्हारे हमराह चलते रहना
वो नज़्म लिखना तुम्हें सुनाना, है एक ख़्वाहिश दबी दबी सी

- सुख़नवर

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