Friday, December 7, 2018

ग़ज़ल

आईना दिल बिखर गया शायद
ज़ख़्म आँखों में भर गया शायद

आप आए हैं बड़ी देर के बाद
वस्ल का दिन गुज़र गया शायद

ज़ख़्म जो रूह पर लगा था कभी
हिज्र लम्हों में भर गया शायद

आपकी बेवफ़ाई का ख़ंजर
दिल में गहरा उतर गया शायद

इश्क़ लम्हे का ज़िक्र रहने दो
इश्क़ लम्हा गुज़र गया शायद

वो जो लम्हों में रँग भरता था
वो सुख़नवर तो मर गया शायद

वो जो बहता था इश्क़ का दरिया
आँसुओं में उतर गया शायद

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