Sunday, September 11, 2016

हद

मैं तुम्हें भूलने की आख़िरी हदों में हूँ
तो यूँ करना
मुझे अब दर्द मत देना
मेरी साँसों में मत बहना
मुझे महसूस मत करना
मुझे एहसास की शिद्दत से ज़्यादा चाहने का जुर्म मत करना
ये आँखें ख़ून रोएँगी

मैं तुम्हें भूलने की आख़िरी हदों में हूँ
तो यूँ करना
मुझे आवाज़ मत देना
सुलगती रात में जब चाँदनी तुमको जला डाले
मुझे आवाज़ मत देना
वो दरिया गर कभी आवाज़ दे तो
तुम मुकर जाना
मुझे मुहब्बत की दास्ताँ से निकाल देना

10 sep 2016

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