चलो एक बार कुछ ऐसा करलें
कि हम दोनों एक लम्हा ऐसा बिताएं
जो हज़ार सालों पर भारी हो
जिसे चाह कर भी हम दोनों
खुद से अलग न कर पाएं
चलो ये अहद फिर से बांधें
चलो फिर से ......
यही बातें हुई थीं ना
जब हम आखिरी बार मिले थे
2012
जिसे पढ़कर कोई अपने बीते लम्हों में पहुँच जाए ऐसी रचना लिखना आसान नहीं होता, अपनी बात और लोग खुद को भी उस लम्हे को जिएँ,जो उनके अहसास के बहुत पास हो ऐसा कम ही होता है! उम्दा 'सुखनवर'...
जिसे पढ़कर कोई अपने बीते लम्हों में पहुँच जाए ऐसी रचना लिखना आसान नहीं होता, अपनी बात और लोग खुद को भी उस लम्हे को जिएँ,जो उनके अहसास के बहुत पास हो ऐसा कम ही होता है! उम्दा 'सुखनवर'...
जिसे पढ़कर कोई अपने बीते लम्हों में पहुँच जाए ऐसी रचना लिखना आसान नहीं होता, अपनी बात और लोग खुद को भी उस लम्हे को जिएँ,जो उनके अहसास के बहुत पास हो ऐसा कम ही होता है!
ReplyDeleteउम्दा 'सुखनवर'...
जिसे पढ़कर कोई अपने बीते लम्हों में पहुँच जाए ऐसी रचना लिखना आसान नहीं होता, अपनी बात और लोग खुद को भी उस लम्हे को जिएँ,जो उनके अहसास के बहुत पास हो ऐसा कम ही होता है!
ReplyDeleteउम्दा 'सुखनवर'...
Wow bahot umdah likha hai janab
ReplyDelete@bafaridi
Wow bahot umdah likha hai janab
ReplyDelete@bafaridi