Sunday, November 29, 2015

कॉफ़ी शॉप

तुम्हे कॉफ़ी शॉप में बिताई वो शाम याद है
जब हम पहली बार मिले थे
और सदियों की प्यासी धरती पर
बादल यूँ टूट के बरसे थे
जैसे मुहब्बत टूट कर होती है
हमारा सिलसिला भी उस दिन
कुछ यूँ ही शुरू हुआ था
मैं आज भी उस बारिश की तरह
टूट कर बरसता हूँ
मगर अपनी ज़मीन से बहुत दूर
2012

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