Saturday, August 6, 2016

बूँद

इक बूँद का तोहफ़ा भेजा है
उस ख़्वाब नगर के बासी ने
उस देस के मौसम फिर मुझको
संदेसा उसका लाए हैं
उसकी धानी रंग चुनरी के
सब रंग चुरा कर लाए हैं
उस मिट्टी की महकारों ने
भीगे मन को पुरक़ैफ किया
उन भीगे से रुख़सारों ने
दिल के आँगन में
तेरी ख़ुशबू का भी इक पेड़ लगाया है
वो बूँद जो तेरे माथे से फिसली थी
तेरे होंठों तक
वो मोती बन कर यादों की सीपी में
कब की क़ैद हुई
ये बूँद जो तूने भेजी है
शायद
उस लम्हे का सरमाया हो
ए ख़्वाब नगर के बाशिंदे
क्या फिर से तूने मुझको मोती भेजा है!!

6aug 2016

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